
दोस्तो इस पोस्ट के माध्यम से हर की पौड़ी हरिद्वार (Har Ki Pauri Haridwar) के बारे में कही जाने वाले कहावत, पौराणिक कथा, इतिहास, की चर्चा कर रहे है
हिन्दू धर्म के अनुसार मृत्यु के बाद अस्थि के राख को गंगा में प्रवाहित करने का विधान है, इससे मृत आत्मा को शांति की प्राप्ति हो जाती है, इसलिए गंगा नदी का स्थान अन्य नदी के अलावे श्रेष्ठ माना जाता है। ऐसे तो गंगाजल अमृत की श्रेणी में माना जाता है, उसपर भी गंगा की धारा जो गोमुख के बेहद करीब है उसे अति पवित्र माना जाता है।
गोमुख तक का मार्ग अत्यन्त कठिन है, एवं गोमुख के नजदीक हरिद्वार है, साथ ही अन्य दैवीय कारण से भी हरिद्वार पवित्र माना जाता है, इसलिए काफी सारे लोग हरिद्वार में अस्थि विसर्जन करने जाते है परन्तु हर की पौड़ी घाट हरिद्वार दर्शन करने नहीं आ पाते है।
बहुत सारे लोग जीवन में कर्म को गति का संतुलन बनाए रखने के कारण सारा समय उसी में ब्यतीत कर लेते है, और जब उनके पास थोड़ा वक्त बचता है तब उनकी अवस्था कहीं आने जाने लायक नहीं रह पाता है।
इसप्रकार उनकी जीवन लीला समाप्त हो जाती है, और वो जीवित अवस्था में हर की पौड़ी घाट हरिद्वार दर्शन हरिद्वार जा नहीं पाते है, मरने के बाद कुछ लोगों का अस्थि तो पहुंच जाता है,
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इससे पहले कोई लाए लोटा या जार में कुछ दिन तो जिन्दा गुजारिए हरिद्वार में क्यों कहा जाता है
हरिद्वार के लोगो को इससे काफी दुख का एहसास होता है, इसलिए लोगों को जागरुक करने के लिए वो लोग हरिद्वार आने वाले लोगो को यह संदेश देते रहते है, कि –इससे पहले कोई लाए लोटा या जार में कुछ दिन तो जिन्दा गुजारिए हरिद्वार में– जिससे कि पूर्वज तो किसी कारण से नहीं आ सके।
लेकिन आने वाले पीढ़ी तो कम से कम जीवित अवस्था में गंगा का दर्शन कर सके, मरने के बाद कोई लाए या नहीं, मरने के बाद इसके लिए क्या किया जा सकता है।
आज के इस युग में जीवन जीना काफी कठिन होता जा रहा है, लोग केवल अपने बारे में सोचते है, परिवार से दादा दादी, माता पिता का स्थान धूमिल होता जा रहा है, ऐसे में जीवित अवस्था में ही गंगा मईया का दर्शन कर लेना श्रेयस्कर होगा, मरने के बाद गंगा मईया का दर्शन नहीं होने का अफसोस क्याें करें।
ऐसा भी नहीं है कि सब के साथ ऐसा हो रहा हो, पर जिनके साथ हो रहा है, इस पोस्ट के माध्यम से उनको स्मरण कराने की कोशिश की गई है, अगर किन्हीं को इससे समस्या हो तो इसके लिए क्षमा करेंंगे।
हर की पौड़ी हरिद्वार (Har Ki Pauri Haridwar)
हरिद्वार में बहुत जगह है जहाँ पर जाने से मन को काफी शांति मिलती है, हर स्थान के बारे में इस पोस्ट में चर्चा करना काफी कठिन होगा। हरिद्वार के पावन स्थलों में से हर की पौड़ी Har Ki Pauri घाट के बारे में कुछ बताने की कोशिश करते है. हरिद्वार में वह जगह है जहां पर गंगा नदी पहाड़ो से निकल कर मैदानी हिस्से में प्रवेश करती है,
ऐसा कहा जाता है भगवान श्री हरी के चरण निशान एक पत्थर पर मिले थे, जो की यंहाँ स्नान करने पर मोक्ष की प्राप्ति की बात का समर्थन करते है। असल में इस घाट से असली गंगा नदी नहीं निकलती केवल उसका जल एक नहर के द्वारा यंहाँ से निकाला जाता है फिर वही जल पवित्र गंगा नदी का होता है
इसलिए सभी श्रद्धालु और साधू संत यंहाँ स्नान कर मोक्ष प्राप्ति की कामना और अपने पाप को धोते है. अगर आप भी हरिद्वार जाए, तो शाम के समय ब्रह्मकुंड के पास जरुर स्नान किजिए,
शाम के समय गंगा का पानी दुधिया रौशनी में नहाया हुआ होता है और आसपास आरती चल रही होती है इसलिए ये समय सबसे उत्तम है.
हर की पौड़ी का इतिहास (History of Har Ki Pauri Ghat)
भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार समुन्द्र मंथन के बाद अमृत निकला, जिसको भगवान विश्वकर्मा ने राक्षसो से बचाकर ले जाने के क्रम में उसकी कुछ बूंदे धरती पर गिर गयी थी, जहाँ जहाँ वो बूंदे गिरी वो जगह पवित्र हो गई.
उस अमृत की कुछ बूंदे हरिद्वार में भी गिरी और जिस जगह वो गिरी उस जगह को आज हम हर की पौड़ी कहते है, और इसी वजह से वर्तमान समय में इस घाट पर नहाने की प्रबल इच्छा हर श्रद्धालु की होती है क्यूंकि माना जाता है यंहा नहाने से मोक्ष की प्राप्ति होती है .
हर की पौड़ी का मतलब
हर की पौड़ी का मतलब है –हरी की पौड़ी अर्थात भगवान विष्णु के चरण– माना जाता है की वैदिक काल में भगवन शिव भी इस घाट पर आये थे.
इस स्थान का निर्माण राजा विक्रमादित्य ने अपने भाई “ब्रिथारी” (भर्तृहरि) की याद में करवाया था | राजा भर्तृहरि गंगा नदी के घाट पर प्रतिदिन बैठकर दीर्घकाल तक ध्यान किया करते थे।
हर की पौड़ी से जुड़ा पौरानिक कथा
ऐसा माना जाता है कि राजा श्वेत के हर की पौड़ी पर ही भगवान् ब्रह्मा की पूजा आराधना करने से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी उनके समक्ष प्रकट हुए और उनसे मनवांछित वर माँगने को कहा, तब राजा ने सृष्टि के रचयिता, भगवान् ब्रह्मा से यह वरदान माँगा कि इस स्थान को भगवान् के नाम से ही जाना जाए।
इस कारण से ब्रह्मा जी ने राजा को इच्छित वर प्रदान किया और तभी से हर की पौड़ी को ‘ब्रह्म कुण्ड’ के नाम से भी जाना जाता है। हर की पौड़ी पर एक पत्थर में भगवान श्री हरी विष्णु के पद चिन्ह भी बने हए है, जो भक्तो के लिए आस्था का केंद्र है |
प्रतिदिन सूर्यास्त के समय साधु – सन्यासी इस स्थान पर आकर माँ गंगा कि महाआरती करते है. साथ ही गंगा नदी भी इस दौरान दिया की रोशनी से पूरा जगमगा उठता है और यह यह दृश्य अत्यंत अद्भुत , सुन्दर और दर्शनीय लगता है. इस स्थान पर प्रत्येक 12 साल के बाद “कुम्भ मेले” का आयोजन किया जाता है , जिसमे देश विदेश से लाखो भक्त इस मेले का आनंद एवम् लुफ्त उठाने आते है |
हरिद्वार के अन्य प्रसिद्ध धार्मिक स्थल
हरिद्वार में स्थित प्रसिद्ध एवं पवित्र स्थल जो “हर कि पौड़ी” के अलावा प्रसिद्ध है। आप इन मंदिरों जैसे “दक्ष महादेव मंदिर“ , “भारत माता मंदिर“ , “मनसा देवी मंदिर“ और “चंडी देवी मंदिर“ के भी दर्शन कर सकते है.
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- चंडी देवी मंदिर श्रेणी धार्मिक …
- मनसा देवी मंदिर श्रेणी धार्मिक …
- पिरान कलियर श्रेणी धार्मिक …
- सुरेश्वरी देवी मंदिर श्रेणी धार्मिक …
- राजाजी राष्ट्रीय पार्क श्रेणी एडवेंचर, प्राकृतिक / मनोहर सौंदर्य
प्रश्न – हरिद्वार नाम कैसे पड़ा?
उतर – गंगा के उत्तरी भाग में बसे हुए ‘बदरीनारायण’ तथा ‘केदारनाथ’ नामक भगवान विष्णु और शिव के प्रसिद्ध तीर्थों के लिये इसी स्थान से होकर मार्ग जाता है। इसीलिए इसे ‘हरिद्वार‘ तथा ‘हरद्वार’ दोनों ही नामों से अभिहित किया जाता है।
प्रश्न – हर की पौड़ी का निर्माण कब हुआ?
उतर – हर की पौड़ी का मतलब है, हरी की पौड़ी अर्थात भगवान विष्णु के चरण, माना जाता है, वैदिक काल में भगवान शिव इस घाट पर आये थे. वर्तमान समय में जो हर की पौड़ी घाट है उसका सर्वप्रथम निर्माण पहली सदी में राजा विक्रमादित्य ने अपने भाई भरथरी की याद में करवाया था, भरथरी दीर्घकाल तक गंगा किनारे ध्यान करते थे,
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