कबीरदास जी साधु का जीवन जीते थे। उनके प्रभावशाली ब्यक्तित्व के कारण उन्हें पुरी दुनिया में प्रसिद्धि मिली । वे हमेशा कर्म में विश्वास करते थे। Kabir Ke Dohe भी यही उपदेश दूसरो को देते थे।
Kabir Ke Dohe में पाये जाने वाले उपदेश आज के बड़े-बड़े प्रेरक वक्ताओं के घंटे की सीख पर भारी है। इस पोस्ट में कबीर के प्रसिद्ध अर्थ के साथ दिये जा रहे है।
कबीर दास जी का जीवन परिचय
नाम : | संत कबीर दास |
जन्म : | 1440 सम्वत् |
जन्म स्थान: | लहरतारा (वाराणसी) |
मृत्यु : | 1518 सम्वत् मगहर |
प्रसिद्ध रचना : | कबीर ग्रन्थावली, बीजक, अनुराग सागर,सखिग्रन्थ आदि । |
Kabir Ke Dohe : कबीर के प्रसिद्ध दोहे
कबीर के दोहे – 01
बुरा वंश कबीर का , उपजा पुत कमाल।
हरि का सिमरन छोड़ के, घर ले आया माल।।
कबीर के दोहे – 02
साई इतना दीजिये, जामें कुटुंब समाय।
मैं भी भूखा ना रहूँ, साधु ना भूखा जाय।।
कबीर के दोहे – 03
लम्बा मारग, दूरि घर, विकट पंथ बहु मार।
कहौ संतो क्यों पाइये, दुर्लभ हरी-दीदार।।
कबीर के दोहे – 04
कबीरा आप ठगाइए, और न ठगिए कोए।
आप ठगे सूख होत है, और ठगे दुख होए।।
कबीर के प्रसिद्ध दोहे अर्थ सहित
कबीर के दोहे – 05
चिंता ऐसी डाकिनी काट कलेजा खाय वैद्य
बिचारा क्या करे कहाँ तक दवा खुवाय
अर्थ : चिंता एक ऐसा रोग है जिसका इलाज वैद्य के पास भी नहीं होता है . इसके इलाज के लिए कितना भी दवा खिलाये यह बीमारी ठीक नहीं होगा
कबीर के दोहे – 06
साई इतना दीजिये, जामें कुटुंब समाय।
मैं भी भूखा ना रहूँ, साधु ना भूखा जाय।।
अर्थ : ईश्वर से हमें उतना ही मांगना चाहिए जितनी हमारी आवश्यकता है अर्थात जिसमें हमारे यहाँ आने वाले कुटुम्ब का पेट भरे हमारा खुद का पेट
कबीर के दोहे – 07
चाह मिटी, चिंता मिटी मनवा बेपरवाह ।
जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह॥
कबीर के दोहे – 08
माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय ।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय ॥
कबीर के दोहे – 09
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर ।
कर का मन का डार दे, मन का मनका फेर ॥
कबीर के दोहे – 10
तिनका कबहुँ ना निंदये, जो पाँव तले होय ।
कबहुँ उड़ आँखो पड़े, पीर घानेरी होय ॥
कबीर के दोहे – 11
गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो मिलाय ॥
कबीर के दोहे – 12
सुख मे सुमिरन ना किया, दु:ख में करते याद ।
कह कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद ॥
कबीर के दोहे – 13
बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर ॥
कबीर के दोहे – 14
साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय ।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ॥
कबीर के दोहे – 15
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ॥
कबीर के दोहे – 16
कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और ।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ॥
कबीर के दोहे – 17
साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गहि रहै थोथा देई उडाय॥
कबीर के दोहे – 18
रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।
हीरा जन्म अमोल था, कोड़ी बदले जाय ॥
कबीर के दोहे – 19
उठा बगुला प्रेम का तिनका चढ़ा अकास।
तिनका तिनके से मिला तिन का तिन के पास॥
कबीर के दोहे – 20
दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ॥
कबीर के दोहे – 21
माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर ।
आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर ॥
कबीर के दोहे – 22
सात समंदर की मसि करौं लेखनि सब बनराइ।
धरती सब कागद करौं हरि गुण लिखा न जाइ॥
कबीर के दोहे – 23
साधू गाँठ न बाँधई उदर समाता लेय।
आगे पाछे हरी खड़े जब माँगे तब देय॥
कबीर के दोहे – 24
जो तोको काँटा बुवै ताहि बोव तू फूल।
तोहि फूल को फूल है वाको है तिरसुल॥