Last Updated on 14/08/2021 by Manoj Verma
इस पोस्ट में दिए दोहे कबीरदास जी के है। कबीरदास जी साधु का जीवन जीते थे। उनके पभावशाली ब्यकि्त्व के कारण उन्हे पुरी दुनिया में पसिद्धि मिली । वे हमेशा कर्म में विश्वास करते थे और यही उपदेश दूसरो को भी देते थे। Kabir ke dohe आज के बड़े-बड़े प्रेरक वक्ताओं के घंटे की सीख पर भारी है ! आगे Kabir ke dohe अर्थ के साथ पढ़े ……
Kabir ke dohe : कबीर के प्रसिद्ध दोहे
दोहा – 01
बुरा वंश कबीर का , उपजा पुत कमाल।
हरि का सिमरन छोड़ के, घर ले आया माल।।
दोहा – 02
साई इतना दीजिये, जामें कुटुंब समाय।
मैं भी भूखा ना रहूँ, साधु ना भूखा जाय।।
दोहा – 03
लम्बा मारग, दूरि घर, विकट पंथ बहु मार।
कहौ संतो क्यों पाइये, दुर्लभ हरी-दीदार।।
दोहा – 04
कबीरा आप ठगाइए, और न ठगिए कोए।
आप ठगे सूख होत है, और ठगे दुख होए।।
Kabir ke dohe : कबीर के प्रसिद्ध दोहे अर्थ सहित
- चिंता ऐसी डाकिनी काट कलेजा खाय वैद्य
- बिचारा क्या करे कहाँ तक दवा खुवाय
अर्थ : चिंता एक ऐसा रोग है जिसका इलाज वैद्य के पास भी नहीं होता है . इसके इलाज के लिए कितना भी दवा खिलाये यह बीमारी ठीक नहीं होगा
- कबीर दास के प्रसिद्ध दोहे?
- साई इतना दीजिये, जामें कुटुंब समाय।
मैं भी भूखा ना रहूँ, साधु ना भूखा जाय।। - जीवन परिचय
नाम : संत कबीर दास
जन्म : 1440 सम्वत्
स्थान: लहरतारा (वाराणसी)
मृत्यु : 1518 सम्वत् मगहर
रचना : कबीर ग्रन्थावली, बीजक, अनुराग सागर,सखिग्रन्थ आदि ।
कबीरदास जी साधु का जीवन जीते थे। उनके पभावशाली ब्यकि्त्व के कारण उन्हे पुरी दुनिया में पसिद्धि मिली । वे हमेशा कर्म में विश्वास करते थे और यही उपदेश दूसरो को भी देते थे।
जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह॥
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय ॥
कर का मन का डार दे, मन का मनका फेर ॥
कबहुँ उड़ आँखो पड़े, पीर घानेरी होय ॥
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो मिलाय ॥
कह कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद ॥
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ॥
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ॥
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ॥
आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर ॥
हीरा जन्म अमोल था, कोड़ी बदले जाय ॥
जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ॥
पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर ॥
सार-सार को गहि रहै थोथा देई उडाय॥
मैं भी भूखा ना रहूँ साधु न भुखा जाय॥
तोहि फूल को फूल है वाको है तिरसुल॥
तिनका तिनके से मिला तिन का तिन के पास॥
धरती सब कागद करौं हरि गुण लिखा न जाइ॥
आगे पाछे हरी खड़े जब माँगे तब देय॥