Kabir Ke Dohe in Hindi 2023 | कबीर के दाेहे हिन्दी में

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कबीरदास जी साधु का जीवन जीते थे। उनके प्रभावशाली ब्यक्तित्व के कारण उन्हें पुरी दुनिया में प्रसिद्धि मिली । वे हमेशा कर्म में विश्वास करते थे। Kabir Ke Dohe भी यही उपदेश दूसरो को देते थे।

Kabir Ke Dohe में पाये जाने वाले उपदेश आज के बड़े-बड़े प्रेरक वक्ताओं के घंटे की सीख पर भारी है। इस पोस्ट में कबीर के प्रसिद्ध अर्थ के साथ दिये जा रहे है।

कबीर दास जी का जीवन परिचय

नाम : संत कबीर दास
जन्म :1440 सम्वत्
जन्म स्थान:लहरतारा (वाराणसी)
मृत्यु : 1518 सम्वत् मगहर
प्रसिद्ध रचना : कबीर ग्रन्थावली, बीजक, अनुराग सागर,सखिग्रन्थ आदि ।

Kabir Ke Dohe : कबीर के प्रसिद्ध दोहे

kabir ke dohe hindi mein 2

कबीर के दोहे –  01

बुरा वंश कबीर का ,   उपजा पुत कमाल।
हरि का सिमरन छोड़ के,    घर ले आया माल।।

कबीर के दोहे –  02

साई इतना दीजिये,   जामें कुटुंब समाय।
मैं भी भूखा ना रहूँ,    साधु ना भूखा जाय।।

कबीर के दोहे –  03

लम्बा मारग, दूरि घर,   विकट पंथ बहु मार।
कहौ संतो क्यों पाइये,   दुर्लभ हरी-दीदार।।

कबीर के दोहे –  04

कबीरा आप ठगाइए, और न ठगिए कोए।
आप ठगे सूख होत है,   और ठगे दुख होए।।

कबीर के प्रसिद्ध दोहे अर्थ सहित

कबीर के दोहे –  05

चिंता ऐसी डाकिनी काट कलेजा खाय वैद्य
बिचारा क्या करे कहाँ तक दवा खुवाय

अर्थ : चिंता एक ऐसा रोग है जिसका इलाज वैद्य के पास भी नहीं होता है . इसके इलाज के लिए कितना भी दवा खिलाये यह बीमारी ठीक नहीं होगा

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कबीर के दोहे –  06

साई इतना दीजिये,   जामें कुटुंब समाय।
मैं भी भूखा ना रहूँ,    साधु ना भूखा जाय।।

अर्थ : ईश्वर से हमें उतना ही मांगना चाहिए जितनी हमारी आवश्यकता है अर्थात जिसमें हमारे यहाँ आने वाले कुटुम्ब का पेट भरे हमारा खुद का पेट

कबीर के दोहे –  07

चाह मिटी, चिंता मिटी मनवा बेपरवाह ।
जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह॥

कबीर के दोहे –  08

माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय ।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय ॥

कबीर के दोहे –  09

माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर ।
कर का मन का डार दे, मन का मनका फेर ॥

कबीर के दोहे –  10

तिनका कबहुँ ना निंदये, जो पाँव तले होय ।
कबहुँ उड़ आँखो पड़े, पीर घानेरी होय ॥

कबीर के दोहे –  11

गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो मिलाय ॥

कबीर के दोहे –  12

सुख मे सुमिरन ना किया, दु:ख में करते याद ।
कह कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद ॥

कबीर के दोहे –  13

बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर ॥

कबीर के दोहे –  14

साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय ।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ॥

कबीर के दोहे –  15

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ॥

कबीर के दोहे –  16

कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और ।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ॥

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कबीर के दोहे –  17

साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गहि रहै थोथा देई उडाय॥

कबीर के दोहे –  18

रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।
हीरा जन्म अमोल था, कोड़ी बदले जाय ॥

कबीर के दोहे –  19

उठा बगुला प्रेम का तिनका चढ़ा अकास।
तिनका तिनके से मिला तिन का तिन के पास॥

कबीर के दोहे –  20

दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ॥

कबीर के दोहे –  21

माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर ।
आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर ॥

कबीर के दोहे –  22

सात समंदर की मसि करौं लेखनि सब बनराइ।
धरती सब कागद करौं हरि गुण लिखा न जाइ॥

कबीर के दोहे –  23

साधू गाँठ न बाँधई उदर समाता लेय।
आगे पाछे हरी खड़े जब माँगे तब देय॥

कबीर के दोहे –  24

जो तोको काँटा बुवै ताहि बोव तू फूल।
तोहि फूल को फूल है वाको है तिरसुल॥

Manoj Verma
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